Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग -8

साधना की सास और माँ दोनों की तबियत अचानक खराब होने से असमंजस की स्थिति में है वो। विवाह के कुछ घंटे पश्चात ही उसके जीवन में शुरू हो गई थी उथल-पुथल।वो अनजान हैं अपने प्रेमी के आत्महत्या के प्रयास और उसके मौत की खबर से जिसे सुनने के पश्चात ही उसकी माँ बेहोश हो गई। सिद्धार्थ की प्रेमिका दीपा जो कि आत्महत्या के बाद एक बुरी आत्मा में तब्दील हो गई है वो साधना के जीवन को नरक बनाने में तुली है।

अब आगे...

अड़तालिस घंटे अस्पताल में रहने के बाद शीला देवी को घर जाने की इजाजत मिल गई।वो बहुत ही कमजोर और शांत दिख रही थी।वो हादसा मात्र उसका वहम था यह यक़ीन नहीं हो रहा था उसे।जरूर कुछ तो बड़ी गड़बड़ है।

ये नई बहु जरूर जादू मंत्र जानती है।इसने घर में कदम रखते ही मुझे अपने काले जादू से मारने की कोशिश की। 

शीला देवी अपनी नई बहु के लिए कितनी उत्साहित थी, बड़े शहर की पढ़ी लिखी योग्य लड़की है। सुंदरता से ज्यादा उसके गुणों पर ही उसने साधना को चुना था अपने बेटे के लिए। 

साधना के परिवार से भी वो बहुत प्रभावित हो गई थी।उनके परिवार के सभी लोग बहुत ही योग्य थे। उसके पिता के अपने सबसे छोटे चाचा जी तो सालों पहले इंग्लैंड में डॉक्टर बनने की पढ़ाई करने गए थे और जब लौटे तो वहीं उनके साथ पढ़ने वाली  एक मेम से विवाह किया और उसे अपने साथ भारत लाए। जिन्होंने एक बार शीला जी की जान भी बचाई थी जब सभी डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे तब उन्हीं के इलाज से शीला जी को नव जीवन प्राप्त हुआ था। 

साधना के पिता के छहों चाचा और उसके पिता सभी बहुत ही शिक्षित और रुतबे वाले थे। शादी के लिए जब रमाकांत जी अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आए थे और साफ शब्दों में कहा था," मेरी बेटी कोई हूर की परी नहीं है, साधारण कद काठी की साँवली सी लड़की है।आप चाहें तो मैं उसे लेकर अगली बार आपके घर आ जाऊंगा। आप अच्छे से देख लीजिएगा, फिर बाद में कभी उसे अपने रंग रूप के कारण ताने सुनने को ना मिले जिससे मेरी बेटी कभी अवसाद या हीन भावना का शिकार हो।"

शीला देवी ने साधना की फोटो देखकर कहा, "नहीं समधी जी इसकी कोई जरूरत नहीं है। हमें लड़की के गुण और संस्कार अच्छे चाहिएं।रंग रूप का क्या आचार डालेंगे।" 
यह बात उसने अपनी दोनों बहुओं की तरफ देखते हुए कही थी।

 शीला जी  की सबसे बड़ी बहू और मंझली बहू दोनों देखने में बहुत सुंदर थी।बड़ी गाँव से आई थी, और अंगूठा छाप थी।मंझली आठवीं फेल। दोनों ही बहुओं से शीला जी की बिल्कुल नहीं पटती थी।

वो खुद तो कभी स्कूल कॉलेज में नहीं पढ़ने गई थी लेकिन शिक्षा उनके लिए सर्वोपरि थी, उनके पति राज्य के सबसे अच्छे विद्यालय के प्रधानाचार्य थे। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को भी पढ़ाया और बहुओं को भी पढ़ाना चाहती थी पर उन दोनों को पढ़ाई लिखाई में जरा भी रुचि नहीं थी। वो तो बात बात पर सिर्फ लड़ाई झगडे के बहाने खोजती।

साधना ने दिल्ली युनिवर्सिटी से एम कॉम कर रखा है और बी एड करने के बाद सरकारी स्कूल में में टीचर की नौकरी करती है। सिलाई कढ़ाई बुनाई पेंटिंग सभी शौक भी पूरा करती है। बहुत लोगों से पता करवाया था साधना के बारे में शीला जी ने।हर किसी ने उसके स्वभाव और गुणों की तारीफ ही की थी।

शीला जी को याद आया वो यह कैसे भूल गई कि साधना के अपने चाचा तांत्रिक हैं और वो तंत्र मंत्र विद्धा में बहुत माहिर हैं। उन्होंने महाकाल आश्रम की स्थापना की है अपने गाँव लखनौर में और उनका अधिकांश समय अब सिर्फ़ तंत्र मंत्र में ही बीतता है।
तो क्या साधना को भी वो यही शिक्षा दे रहें हैं... नहीं यह मैंने पहले क्यों नहीं सोचा।
पर वो तो गाँव में रहते हैं और साधना अपने मांँ पापा के साथ दिल्ली में रहती थी।
शीला जी के मन में अनेकों शंकाओं ने तुफान का रूप धारण कर लिया था। 

,, वो बाहर से बिल्कुल शांत दिख रहीं थीं परन्तु उनके अंदर चल रहा भूचाल कभी भी बाहर आ सकता था और ऐसा ही हुआ।

जब हॉस्पिटल से घर पहुंचने के बाद गोविंद ने अपनी माँ से कहा, "माँ क्या आपने अपनी नई बहु की मुंह दिखाई के लिए खरीदा हुआ ज्वैलरी सैट उसे दिया। आपने तो शायद उसका मुंह भी नहीं देखा।"

ठीक ही कह रहा था गोविंद कि उसकी माँ यानी शीला जी ने नई  बहु के लिए खरीदा हुआ उपहार तो उसे तब देती जब वो मछली वाले हादसे के कारण  बेहोश ना हुई होती ।

"नहीं रहने दो गोविंद मेरा अभी मन नहीं है, उसे देखने का।उसी का सामान है जब चाहे ले लेगी।"
शीला जी गोविंद को मना कर ही रही थी कि तभी उनकी छोटी बेटी गुड़िया साधना को लेकर शीला जी के पास आती है।

" चलो भाभी, माँ का पैर छुओ।माँ ने आपकी मुँह दिखाई के लिए इतना प्यारा सोने का हार बनवाया है कि आप देखोगी तो आपकी आँखें खुली की खुली रह जाएंगी।"

गोविन्द तब तक अलमारी से ज्वैलरी का वो बॉक्स ले आया और माँ के हाथ में थमा दिया।

साधना ने लाल रंग की चुनरी प्रिंट हल्की सी साड़ी पहनी हुई थी और लंबा सा घूंघट निकाला हुआ था। जैसे ही शीला जी के पैर छूने के लिए झुकी उन्होंने अपने पैरों को सोफे के अंदर ढकेलते हुए अपने हाथ के इशारे से मन कर दिया।

,, और बिना साधना का मुंह देखे उसके हाथ में जैसे ही वो ज्वैलरी बॉक्स रखा....
...दीपा की आत्मा तैश में आ गई..
 इन गहनों पर सिर्फ मेरा अधिकार था।
यह इसे कभी नहीं पहन पाएगी।

दीपा की आँख से निकली चिंगारी ने डिब्बे के अंदर रखे गहनों को भस्म कर डाला।
जैसे ही गुड़िया ने डिब्बा खोला, उसमें सिर्फ़ राख था।

यह देखकर वो हैरान हो गई।वो हार तो गुड़िया को भी बहुत पसंद आया था पर इस बॉक्स में राख कैसे आया और वो हार कहाँ गया। अभी अगर मांँ को कुछ बताया इसके बारे में तो वो फिर बेहोश ना हो जाए यह सोचकर उसने वो बॉक्स फटाफट बंद किया और साधना को अपने साथ लेकर दूसरे कमरे में ले जाते हुए कहा," भाभी अभी माँ को आराम की जरूरत है,आप उनकी किसी बात का बुरा मत मानिएगा।वो दिल की बहुत अच्छी हैं।'

साधना की ननद गुड़िया के मनसूबों पर किस ने पानी फेर दिया वो यही सोच कर परेशान थी।
गुड़िया ने क्या चाल चल रखी थी, जानने के लिए अगला भाग पढ़िए।


क्रमश:

आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई। 
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।

कविता झा'काव्या कवि'
©®
# लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता 

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6 Comments

Chetna swrnkar

25-Sep-2022 10:50 AM

बहुत खूब 👌

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shweta soni

25-Sep-2022 08:12 AM

बहुत सुंदर रचना

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